Thursday, August 7, 2014





चाचा चौधरी और साबू के जनक प्राण नहीं रहे

अनगिनत लोगों के बचपन की सुनहरी यादों का हिस्सा रहे प्रसिद्ध कार्टून चरित्र चाचा चौधरी और साबू को रचने वाले 76 वर्षीय मशहूर कार्टूनिस्ट प्राण कुमार शर्मा का निधन हो गया। कैंसर से पीड़ित प्राण का इलाज साइबर सिटी के मेदांता अस्पताल में चल रहा था। जहां मंगलवार (5/08/2014) रात उन्होंने अंतिम सांस ली। बुधवार (06/08/2014) को दिल्ली स्थित पंजाबी बाग में उनका अंतिम संस्कार किया गया।


प्राण कुमार शर्मा 


कार्टून को ‘प्राण’ देकर वे चले गए


प्राण और मेरा रिश्ता दोस्तों जैसा या कहूं कि दोस्ती से भी बढ़कर था। हम अक्सर भाइयों की तरह मिला करते थे। पिछले 4-5 साल से उनसे बातचीत काफी कम हो पाती थी। मगर पहले मैं जब भी दिल्ली आता था, हम प्रेस क्लब में मिला करते थे। वहां जमकर बातचीत होती थी। साथ में खाना-पीना होता था। बातों-बातों में वह इतने दिलचस्प व्यंग्य छेड़ते थे कि उनके साथ वक्त का पता ही नहीं चलता था।
हमारी उम्र में ज्यादा फर्क नहीं था। वह मुझसे 1-2 साल छोटे ही थे। हम दोनों ही कार्टूनिंग कर रहे थे, मगर हमारे बीच कभी प्रोफेशनल लोगों जैसे संबंध नहीं रहे। वह जितने अच्छे कार्टूनिस्ट थे, उतने ही बेहतरीन इंसान भी थे। मुझे नहीं लगता आज के जमाने में मुझे उन जैसा कोई दूसरा इंसान मिल सकता है। उन्हें निजी तौर पर जानने के कारण मैं यह भी कह सकता हूं, उनसे अगर कुछ सीखना हो तो यह सीखना चाहिए कि किस तरह अप्रोच सॉफ्ट रखकर भी अपनी बात कही जा सकती है। यह अदा इंसान के तौर पर उनके व्यक्तित्व में भी थी और कार्टूनिस्ट के तौर पर उनके कार्टूनों में भी दिखती थी। भारतीय कार्टूनिस्ट का नाम उन्होंने हिंदी बेल्ट में काफी आगे बढ़ाया।
ऐसे समय में जब हिंदी के नाम पर कार्टून में सिर्फ अंग्रेजी का अनुवाद था, उन्होंने हिंदी के अपने किरदार गढ़े। उन्हीं के आने के बाद यह बात कहावत की तरह मशहूर हो गई- ‘अंग्रेजी में आर.के.लक्ष्मण तो हिंदी में प्राण’। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने उन्हें साल 1995 के पीपुल ऑफ द ईयर में शामिल किया था। साल 2001 में उन्हें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कार्टूनिस्ट ने लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से भी नवाजा। वर्ल्ड एनसाइक्लोपीडिया ऑफ कॉमिक्स के एडिटर और कॉमिक्स व कार्टून की दुनिया की जानी-मानी शख्सियत मॉरिस होर्न ने उन्हें भारत के वॉल्ट डिज्नी का टाइटल दिया था। मुझे लगता है उन्हीं के जरिये हमारे देश और हिंदी कार्टून की दुनिया को बड़ी उपलब्धि मिली। उनके किरदार चाचा चौधरी को अमेरिका के इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ कार्टून में स्थायी तौर पर जगह दी गई है। वह चले गए हैं, मगर अपने पीछे ऐसे किरदार छोड़ गए हैं, जो हमेशा हमें हंसाकर उनकी याद दिलाते रहेंगे।एक प्रधानमंत्री जाता है तो उसकी जगह पर दूसरा आ जाता है। एक आबिद सुरती के बाद दूसरा आ सकता है। मगर एक प्राण गया है तो उसकी जगह कोई दूसरा नहीं ले सकता।
(हिमानी दीवान से बातचीत पर आधारित)

यूं हुआ चाचा चौधरी का जन्म
सभी की यादों में चाचा चौधरी, साबू

हिंदी मैगजीन ‘लोटपोट’ के मालिक पीके बजाज ने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि प्राण साहब उन दिनों फ्रीलांसिंग किया करते थे और उनकी पत्नी हमारे पब्लिकेशन के लिए कहानियां लिखा करती थीं। उन्होंने ही एक दिन प्राण साहब के बारे में बताया। इसके बाद हमने एक किरदार गढ़ने का फैसला किया, जो दुनियाभर के बच्चों को पसंद आए। हमारे पड़ोस में अक्सर बच्चे अपने से बड़ों को चाचा-चाचा कहकर बुलाते थे, तो हमें लगा कि चाचा नाम बिल्कुल सही रहेगा। इसके बाद चाचा चौधरी का जन्म हुआ।

प्राण कुमार शर्मा ने चाचा चौधरी के अलावा साबू, राका, बिल्लू, पिंकी जैसे किरदारों को गढ़ा। ये सभी किरदार न जाने कितने लोगों के बचपन की यादों में हमेशा बसे रहेंगे।
देश के पहले बूढ़े सुपरहीरो ः वह प्राण ही थे, जिन्होंने सुपरमैन, स्पाइडरमैन जैसे विदेशी सुपरहीरो की टक्कर में भारत को पहला बूढ़ा सुपरहीरो दिया। जिसका दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है। जो मुश्किलों को चुटकी बजाते ही सुलझा सकता है।



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