मुंशी प्रेमचंद का बाल साहित्य में योगदान
आज बाल साहित्य कुछ गिनी चुनी पत्रिकाओ तक ही सिमट कर रह गया है, जो शायद नए लेखको और साहित्यकारो के बचकाने प्रयास भर ही है। साहित्य जगत के मझे हुए खिलाड़ियों को बाल साहित्य लिखने में कोई रूचि नहीं है क्योकि बाल साहित्य लेखको को प्रोत्साहित करने के लिए ना कोई बड़ा पुरस्कार ही दिया जाता है और न किसी प्रकार की गाढ़ी कमाई ही है। आज नए लेखक या कवि जो साहित्य जगत में अभी अभी आये हैं वो अपनी कलम की धार तेज करने के उददेश्य से बाल रचनाये लिख रहे हैं जिसकी वजह से बाल साहित्य का स्तर दिन पे दिन गिरता जा रहा है। उन रचनाओं में वो विषय नहीं होते जो बच्चों और किशोरों के मन तक पहुंच पाये , ये रचनाये मनोरंजन मात्र के लिए ही होती हैं।
आज बच्चो में भी पढ़ने की रूचि कम हुई है , पढने से मेरा तात्पर्य अपनी पाठयपुस्तक (TEXT BOOK) के अतिरिक्त पुस्तके पढ़ने से है। आज के इस दौर में प्रत्येक माता पिता अपने बच्चो को भविष्य बनाने के लिए डॉक्टर और इंजीनियर ही बनाना चाहते हैं , कुछ अपवादों को छोड़ कर साहित्य और कला के क्षेत्र में उनकी मजबूरी ही ले आती है। क्योकि आज माँ बाप के साथ साथ बच्चे भी साहित्य पढ़ने को समय के बर्बादी ही मानते हैं। आज के बच्चो किशोरों और युवाओं में नैतिक मूल्य नज़र नहीं आते क्योकि उन्हें साहित्य और कला को किनारे कर के पैसा कमाने की ओर प्रेरित किया गया है। अच्छे संस्कार , आदते और संस्कृति की समझ मनुष्य को बचपन में ही सिखाये जा सकते है और इसका दायित्व माँ बाप और शिक्षको पर होता है। माँ बाप का दायित्व ज्यादा है क्योकि माँ बाप ही अपनी संतान को दुनिया में लाते हैं तो वो बच्चा बड़ा हो कर समाज पर बोझ या समाज के प्रति गैर जिम्मेवार ना हो जाए इसका ध्यान माँ बाप को ही रखना चाहिए। आज समाचारो में आये दिन ऐसी अप्रिय घटनाये सुनने को मिलती हैं जो आज के युवाओ में देश और समाज के प्रति गैर जिम्मेदाराना रवैया दर्शाती है और ये पिछले २५ सालो में साहित्य और कला के प्रति बच्चो किशोरों और युवाओ की उदासीनता का परिणाम है। माँ बाप और शिक्षको ने बच्चो को नंबर पाने और पैसा कमाने पर बल दिया पर नैतिक मूल्य और संस्कारो को आत्मसात करना नहीं बता पाये। बाल साहित्य जो बच्चो और किशोरों के चरित्र निर्माण में सहायक हो सकता था उसे नयी पीढ़ी के माँ बाप और शिक्षको के साथ साथ सरकार ने भी दरकिनार किया।
साहित्य कोई पढ़ना नहीं चाहता और ना ही लिखना चाहता है। हाँ सही पढ़ा आपने की कोई लिखना नहीं चाहता। जो कुछ भी लिखा जाता है चाहे वो बड़ो के लिए लिखा जाता हो या बच्चो के लिए वो जबरदस्ती ही लिखा जाता है। बड़ो के लिए लिखे जाने वाले साहित्य में कुंठित मन की अभिव्यक्ति ही होती है और जो अंतरंग सम्बन्धो और अश्लीलता को समेटे होती है या लेखन ऐसी व्यक्तिगत समस्या पर केंद्रित होता है जिससे किसी और का सरोकार ही ना हो। कुछ ऐसे भी साहित्यकार हैं जो बस पुरस्कार पाने के उद्देश्य से ही लिखते है।
बाल साहित्य लिखने के लिए दुनिया को बच्चो और किशोरों की नज़र से देखने की आवश्यकता होती है। बड़ा बन कर बच्चो के लिए नहीं लिखा जा सकता। रुसी साहित्य कार लियो तोलस्तोय ने जितना और जैसा बच्चो के लिए लिखा है उसी से मेल खाता साहित्य भारत में प्रेमचंद ने लिखा।
प्रेमचंद ने बच्चो के लिए जो कुछ लिखा है उसका अनुसरण ही आज के साहित्य कार करते आ रहे हैं। प्रेमचंद की लिखी हुई प्रसिद्ध बाल कहानियो में ईदगाह , दो बैलो की कथा , सच्चाई का उपहार, बड़े भाई साहब , गुल्ली - डंडा, कजाकी इत्यादि को गिना जा सकता है।
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