प्रख्यात बाल साहित्य कार श्री हरी कृष्ण देवसरे और श्रीप्रसाद जी का निधन बाल साहित्य जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है। डॉ. देवसरे का एक लम्बी बीमारी का बाद १४ नवंबर २०१३ को निधन हो गया, बाल साहित्य जगत के स्तम्भ का बाल दिवस के दिन ही अंत हो जाना अपने आप में एक विडम्बना है। ऐसे शख्स का जिसने अपना जीवन बाल साहित्य जगत को अपने निरंतर प्रयासों से सवारने में लगा दिया और बच्चो के लिया लेखन को समर्पित रहा उनका बाल दिवस के दिन ही हमेशा के लिए चले जाना प्रकृति के द्वारा किया गया चुटीला व्यंग ही है।
श्री हरी कृष्ण देवसरे जी से मेरा परिचय पराग पत्रिका के माध्यम से हुआ, मैंने जब पराग पढ़ना शुरू किया था तब मेरी उम्र मात्र १० साल थी और देवसरे साहब उस समय पराग के संपादक थे । पराग पत्रिका को देवसरे साहब ने एक नया रूप दिया और उस वक्त की नयी पीढ़ी को एक नयी दिशा दी। डॉ श्री कृष्ण देवसरे जी सम्पादन के साथ साथ पराग के लिए रचनाये भी लिखते रहे और सम्पादकीय "मेरी बात सुनो" के माध्यम से बच्चो से सीधे संवाद स्थापित करते रहे।
डॉ श्री प्रसाद जी भी बच्चो के लिए लिखे जाने वाले साहित्य में एक जाना माना नाम हैं, पराग पत्रिका के माध्यम से उनकी रचनाये हम तक लगातार पहुँचती रही।
डॉ श्री हरी कृष्ण देवसरे
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